राजस्थान की हस्तकलाएँ
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थेवा कला:-
विश्व में थेवा कला का एकमात्र केन्द्र – प्रतापगढ
थेवा कला – काँच में सोने का चित्रंाकन।
रंगीन बेल्जियम कांच का प्रयोग किया जाता है।
प्रतापगढ़ का सोनी परिवार इस कला में सिद्धहस्त है।
नाथू जी सोन ने इस कला को शुरू किया था।
वर्तमान में गिरीश कुमार इस कला को आगे बढ़ा रहे है।
जस्टिन वकी ने इसे अन्तर्राष्टीय स्तर पर पहचान दिलायी।
महेश राज सोनी पदम् श्री 2015 मिल चुका है।
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टेराकोटा:-
पकाई हुई मिट्टी से मूर्तियां व खिलौने बनाए जाते हैं।
मिट्टी को 800 डिग्री सेन्टीग्रेड पर गर्म किया जाता है।
राजसमन्द का मोलेला गांव टेराकोटा मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है।
जालौर जिले को हरजी गांव मामा जी के घोडे बनाये जाते है।
मोहनलाल कुम्हार को इसके लिए पद्म श्री मिल चुका है।
बड़ोपल (हनुमानगढ़) एक पुरातात्विक स्थल है, जहां से टेराकोटा मूर्तियो प्राप्त हुयी हैं, जो बीकानेर संग्रहालय में रखी हुयी हैं।
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ब्लू पॉटरी:-
चीनी मिट्टी के सफेद बर्तनों पर नीले रंगो का अंकन।
जयपुर इसका प्रमुख केन्द्र है।
जयपुर महाराजा रामसिंह के समय चूड़ामण व कालू कुम्हार को मोला नामक कारीगर से प्रशिक्षण लेने के लिए दिल्ली भेजा।
वर्तमान में इसके प्रमुख कलाकार कृपाल सिंह शेखावत है, जिन्हें इसके लिए पद्म जी से नवाया जा चुका है।
कृपाल सिंह जी ने नीले रंग के अतिरिक्त 25 से अधिक अन्य रंगो का प्रयोग किया, जो ब्लू पॉटरी की कृपाल शैली कहलाती हैं
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मीनाकारी:-
सोने पर रंग चढ़ाने की कला।
जयपुर मीनाकारी के लिए प्रसिद्ध है।
महाराजा मानसिंह इसे लाहौर से लेकर आए थे।
कुदरत सिंह को मीनाकारी के लिए पद्म श्री मिल चुका है।
अन्य केन्द्र प्रतापगढ़, कोटा, बीकानेर।
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उस्ता कलाः-
ऊँट की खाल पर सोने की चित्रकारी।
महाराज अनूपसिंह (बीकानेर), अली रजा व रूक्नुदीन को लाहौर से लेकर आए थे।
बीकानेर उस्ता कला का प्रमुख केन्द्र हैं
बीकानेर के हिसामुद्दीन उस्ता को पद्म श्री मिल चुका है।
उस्ता कला सिखाने के लिए बीकानेर में कैमल हाईड टेªनिंग सेन्टर स्थापित किया गया है।
- रंगाई-छपाई:-बाड़मेंर – अजरक प्रिन्ट – नीले रंग का अधिक प्रयोग।
मलीर प्रिन्ट – काले व कत्थई रंग का अधिक प्रयोग। - सांगानेर – सांगानेरी प्रिन्ट (काला व लाल रंग)
जयपुर का प्रसिद्ध - मुन्ना लाल गोयल ने इसे अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि
- दिलायी।
- चितौड़गढ़ – दाबू प्रिन्ट
आजम प्रिन्ट – आकौला चितौड़गढ़ - जाजम प्रिन्ट – गाड़िया लुहारों की स्त्रियों के कपड़ो की छपाई।
- बंघेज:- जयपुर में प्रसिद्ध है।
Tie And Dye के नाम से प्रसिद्ध। - चूनड़ी – जोधपुर
- पोमचा – जयपुर
लड़के के जन्म पर – पीला पोमचा
लडकी की जन्म पर – गुलाबी पोमचा - तलवा – सिरोही
- लोहे के औजार – नागौर
- मोजड़ियाँ – भीनमाल (जालौर)
- पेंच वर्क – शेखावटी
- कृषि औजार – नागौर (लकड़ी), गंगानगर (लोहे के)
- मिरर वर्क – जैसलमेर
- फड़ चित्रण – शाहपुरा (भीलवाड़ा)
- शाहपुरा का जोशी परिवार फड़ चित्रण के लिए प्रसिद्ध है।
(श्रीलाल जोशी – प्रमुख कलाकार)
पार्वती जोशी, भारत की पहली महिला फड़ चितेरी है। - बादला – जोधपुर (पानी को ठंडा रखने का बर्तन)
- जस्ते की मूर्तियां – जोधपुर
- रमकड़ा उद्योग (खिलौने) – गलियाकोट (डूंगरपुर)
- काष्ठ कला (देवताओं के मन्दिर मूर्तियां) – बस्सी (चितौड़गढ़)
- तारकशी के जेवर (चांदी के पतले तारो द्वारा निर्मित जेवर) – नाथद्वारा (राजसंमद)
- गोटा किनारी (किरण, बांकडी, लप्पा, लप्पी) – खंडेला (सीकर)
- खस के बने पानदान – सवाई माधोपुर
- कोटा डोरिया/मंसूरिया – कैथूल (कोटा)/मांगरोल (बांरा)
- जालिम सिंह झाला सर्वप्रथम महमूद मंसूर नाम व्यक्ति को लेकर आये थे, इसलिए नाम मसंूरिया पड़ा।
वर्तमान में श्रीमती जैनव इसकी प्रमुख कारीगर है।
इस कपडे में चौकोर खाने बने होते है। - लहरिया – जयपुर और पालीं
- जोरजटट् – जसोल (बाड़मेर)
- गलीचे/नमदे – टोक/जयपुर/बीकानेर
जयपुर व बीकानेर की जेलों में बने गलीचे प्रसिद्ध है। - दरियाँ – सालाबास (जोधपुर) लवाण (दौसा) टांकला (नागौर)
- कागजी बर्तनी – अलवर
- आरा-तारी – सिरोही
- जड़ाई – जयपुर
- पिछवाई – नाथद्वारा
- पाव रजाई – जयपुर
- लाख का काम – जयपुर
- हाथी दांत – जोधपुर/पाली
- कठपुतली – उदयपुर
- संगमरमर की मूर्तियां – जयपुर
- अर्जुन लाल प्रजापत को इसके लिए पद्म श्री मिल चुका है।
- जरदोजी – जयपुर
- पेपरमेसी – जयपुर
- कागज की वस्तुएँ – सांगानेर
- ब्लैक पॉटरी – कोटा
- कोफ्तगिरी – लोहे की वस्तुओं में सोने की कारीगरी – जयपुर/अलवर
- यह कला सीरिया से भारत आयी थी।
- तहनिशा – पीतल पर सोने की कारीगरी – अलवर/जयपुर
- नसवार – ब्यावर
- खेल का सामान – हनुमानगढ़
- जेम्स एंड ज्वैलरी – जयपुर
- गरासियों की फाग (भोढ़नी) – सोजत (पाली)
- मेंहदी – सोजत
- पशु पक्षियों की कलाकृति – नागौर
- गोल्डन पेंटिग – कुचामन एवं मारोढ (नागौर)
- आलागीला कारीगरी – बीकानेर
- लकड़ी के झुले – उदयपुर
- पत्थर मूर्तिकला – तलवाडा (बासंवाडा)
- मलमल – जोधपुर
- चन्दन की मलयागिरी लकडी पर खुदाई – चुरू
- काष्ठ पर कलात्मक शिल्प – जेठाना (डूगंरपुर)
- ऊनी कम्बल – जैसलमेर
- खेसले – लेटा (जालौर)
- हस्त शिल्प कागज राष्ट्रीय संस्थान – सांगानेर (जयपुर)
- हस्त शिल्प डिजाइन एवं विकास केन्द्र – जयपुर
- राज्य का पहला ’अरबन हाट’ जोधपुर में स्थापित किया गया है।
- हस्तशिल्पियों को उनका पूरा मूल मिल सके।